Rigved Ki Jankari ऋग्वेद की जानकारी
Rigved Ki Jankari ऋग्वेद की जानकारी
वेदों का महत्व
यदि साहित्य और संस्कृति के विषय में बात की जाए तो इतिहास में वेदों का बहुत अधिक महत्व है यह विश्व के प्राचीनतम तथा विशाल ग्रन्थ हैं भारत के लोगों की विचारधारा पर वेदों का प्रभाव व्यापक रूप में दिखता है वेदों से अच्छी नैतिक शिक्षा के साथ-साथ मानव जीवन के अर्थ को समझने में भी सहायता प्राप्त होती है
वेद क्या हैं?
वेद शब्द की उत्पत्ति
वेद शब्द “विद” से बना है जिसका अर्थ – विचार तथा ज्ञान है वह ज्ञान जो मनुष्य को उसके जीवन तथा जीवन जीने के तरीकों को बताता है
वेदों की संख्या
वेद कितने हैं?
वेदों की संख्या 4 है
जिस वेद में ऋचाओं को एकत्र किया गया है वह “ऋग्वेद” है ये मंत्र जब गाए जाते हैं तब इन्हें “साम” कहा जाता है और सामों का संकलन “सामवेद” है जिस वेद में गद्यों की प्राधानाता है उसे “यजुर्वेद” कहा गया इसका प्रयोग यज्ञों के लिए किया जाता है “स्तवन“, “गायन” तथा “यजन” इन तीनों पर ऋग्वेद, सामवेद तथा यजुर्वेद का विभाजन हुआ है इन तीनों को एक साथ “वेदत्रयी” भी कहा जाता है ऐसे मंत्र जिनका संग्रह अथर्वा ऋषि ने किया वह अथर्ववेद के नाम से प्रसिद्द हुए
ऋग्वेद
ऋग्वेद को सबसे प्राचीन तथा विषयवस्तु के आधार पर सबसे बड़ा वेद माना जाता है यह वेद वैदिक साहित्य में सबसे बड़ा है
ऋग्वेद के विभाग
ऋग्वेद को दो क्रमों में विभाजित किया गया है – मंडल-क्रम तथा अष्टक क्रम
मंडल क्रम
इसे बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है क्यूंकि यह ऐतिहासिक तथा वैज्ञानिक है ऋग्वेद में 10 मण्डल है प्रत्येक मण्डल में अनुवाक्, अनुवाक् में सूक्त तथा सूक्त में ऋचाएं है
मण्डल – अनुवाक् – सूक्त – ऋचाएं
10 मण्डल में 85 अनुवाक् हैं सम्पूर्ण ऋग्वेद में 1017 सूक्त है तथा 11 बालखिल्य सूक्त है इस प्रकार कुल सूक्तों की संख्या 1028 है (बालखिल्य सूक्त का स्थान अष्टम मण्डल में आता है) मुख्य सूक्तों की संख्या 92 है
अष्टक क्रम
इस क्रम विभाजन के अनुसार सम्पूर्ण ऋग्वेद संहिता को 8 अष्टकों में विभाजित किया गया है जिसमें से प्रत्यक अष्टक में 8 अध्याय हैं तथा सम्पूर्ण ऋग्वेद (8×8=64) 64 अध्यायों का ग्रन्थ है
ऋचाओं के समूह वर्ग कहे जाते हैं लेकिन एक वर्ग में ऋचाओं की संख्या निश्चित नहीं की गई है ऋग्वेद में सभी वर्गों की संख्या 2000 है ऋग्वेद में सबसे अधिक ऋचाएं अग्नि देव को समर्पित की गई हैं
नासदीय तथा पुरुष सूक्त भी 10 मण्डल में हैं जो दार्शनिक विचारधारा से परिपूर्ण हैं कहा जाता है की “एकोडहं बहु स्याम” (मैं एक हूँ, बहुत हो जाऊं) की भावना से सृष्टि जी रचना हुई तथा इसके लिए सर्वप्रथम पुरुष सूक्त का स्मरण किया गया इस प्रकार इस सूक्त में दार्शनिक तत्व के साथ-साथ सृष्टि प्रक्रिया का सूक्ष्म वर्णन है
“श्रद्धासूक्त” में प्रथम मंत्र में यह संकेत दिया गया है किसी भी कार्य के लिए श्रद्धा की आवश्यकता होती है
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