पल्लव वंश के इतिहास की जानकारी | Pallav Vansh ka Itihas GK in Hindi

Pallav Vansh ka Itihas GK in HindiPallav Vansh ka Itihas GK in Hindi

Pallav Vansh ka Itihas GK in Hindi

पल्लव वंश की सामान्य जानकारी

पल्लव वंश की स्थापना के समय सातवाहन वंश समाप्त हो रहा था
क्षेत्र – उत्तरी तमिलनाडु से दक्षिणी आं. प्र. (कृष्णा नदी के दक्षिण में)
पल्लव वंश की राजधानी – कांची (तमिलनाडु)
पल्लव वंश की राजभाषा – संस्कृत
पलाव वंश के संस्थापक – बप्पादेव (पल्लव वंश के वास्तविक संस्थापक – सिंहविष्णु)

पल्लव वंश के प्रमुख शासक 

सिंहविष्णु

महेन्द्रवर्मन प्रथम
नरसिंहवर्मन प्रथम
महेंद्रवर्मन द्वितीय
परमेश्वरवर्मन
नरसिंहवर्मन द्वितीय

 

सिंहविष्णु कौन थे

सिंहविष्णु  वैष्णव धर्म का अनुयायी थे
सिंहविष्णु के दरबार में भारवि नामक लेखक था जिसने “किरातार्जुनियम” की रचना की
सिंहविष्णु के शासनकाल में मामल्लपुर में वराह गुफा मंदिर का निर्माण हुआ था

महेन्द्रवर्मन प्रथम

सिंहविष्णु के बाद महेन्द्रवर्मन I शासक हुआ
महेन्द्रवर्मन महान कवि तथा संगीतज्ञ भी था
महेन्द्रवर्मन प्रारम्भ में जैन धर्म का अनुयायी था बाद में तमिल संत “अप्पर” के प्रभाव में आकर “शैव धर्म” का अनुयायी बना
इसके शासन काल में वातापी चालुक्य वंश के पुलकेशिन II ने आक्रमण किया तथा महेन्द्रवर्मन I को पराजित किया
महेन्द्रवर्मन I ने “मतविलास प्रहसन” की रचना की जो पल्लव काल का प्रमुख ग्रन्थ है

नरसिंहवर्मन प्रथम

महेन्द्रवर्मन I का पुत्र नरसिंहवर्मन प्रथम अगला शासक बना
नरसिंहवर्मन प्रथमने  वातापी के चालुक्य शासक पुलकेशिन II को पराजित कर “वातापीकोंड” की उपाधि ली थी
इसके शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग कांची आया था
इसने महाबलीपुरम या मामल्लपुरम में रथमंदिर (एकाश्म मंदिर) का निर्माण कराया
रथमंदिरों की संख्या 7 है जिन्हें सप्तपैगोड़ा के नाम से भी जाना जाता है
इसके बाद महेन्द्रवर्मन द्वितीय तथा परमेश्वर वर्मन प्रथम के बाद प्रमुख शासक नरसिंहवर्मन द्वितीय था


नरसिंहवर्मन द्वितीय

नरसिंहवर्मन द्वितीय का शासनकाल शान्ति का समय कहा जाता है

नरसिंहवर्मन द्वितीय के समय स्थापत्य कला का अधिक विकास हुआ

नरसिंहवर्मन द्वितीय के समय कई मंदिरों का निर्माण हुआ – मुक्तेश्वर मंदिर (कांची), बैकुंठ पेरुमाला मंदिर,महाबलीपुरम का शोर मंदिर, कैलाशनाथ मंदिर (राजसिद्धेश्वर मंदिर, कांची)
इन्हीं मंदिरों के निर्माण से “द्रवीण स्थापत्य कला” का प्रारम्भ हुआ

नरसिंहवर्मन द्वितीय के दरबार में संस्कृत के लेखक “दंडी” थे जिन्होंने “देशकुमारचरित” की रचना की थी

नरसिंहवर्मन द्वितीय के समय ही अरबों का आक्रमण हुआ था


नरसिंहवर्मन द्वितीय के बाद

नन्दीवर्मन
नंदीवर्मन द्वितीय (वैष्णव संत तिरुमंगई का समकालीन)
पल्लव वंश का अतिम शासक अपराजित वर्मन (अंतिम शासक)
अंत में चोल वंश के शासकों ने इनके राज्य को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया


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