Kushan Vansh कुषाण वंश
Kushan Vansh कुषाण वंश
तुर्क उद्गम थ्योरी – इसके अनुसार कुषाण तुर्की माने जा सकते हैं क्यूंकि दोनों के सिक्के तथा उपाधियाँ सामान थीं
मंगोल उद्गम थ्योरी – यूची कबीले वाले खानाबदोश थे यह मध्य एशिया में रहते थे
कुषाणों का पहला शासक – कुजुल कडफिसेस (कडफिसेस I)
कुजुल कडफिसेस ने ताम्बे के सिक्के चलाये जिन जो यूनानी तथा खरोष्ठी भाषा में थे (प्रथम शताब्दी का पूर्वार्ध)
कुजुल कडफिसेस के बाद विम कडफिसेस (कडफिसेस II) आया
कुषाण शासकों (विम कडफिसेस) ने सर्वाधिक मात्रा में सोने तथा ताम्बे के सिक्के चलाये
भारत में कुषाण वंश का वास्तविक संस्थापक विम कडफिसेस को माना जाता है
कुषाण वंश का सबसे प्रमुख शासक विम कडफिसेस का पुत्र “कनिष्क” था
कुषाण वंश में का सबसे प्रमुख शासक “कनिष्क” था
कनिष्क के राज्यरोहण के समय 78 ई. में शक संवत का प्रारंभ किया गया (इसे शालीवाहन केलेंडर भी कहते हैं)
कनिष्क के समय में चतुर्थ बौद्ध संगीती (कुंडलवन, जम्मू-कश्मीर-प्रथम शताब्दी) हुई थी
चतुर्थ बौद्ध संगीति के अध्यक्ष – वसुमित्र
चतुर्थ बौद्ध संगीति के उपाध्यक्ष – अश्वघोष
इस बौद्ध संगीति में तीनों पीटकों को मिलाकर टीकाओं की रचना की गयी तथा “महाविभाष” पुस्तक की रचना वसुमित्र ने किया
“महाविभाष” को बौद्ध धर्म का महाकोश या विश्वकोश कहा जाता है
चतुर्थ बौद्ध संगीति के बाद बौद्ध धर्म के हीनयान की नयी शाखा महायान बनी
कनिष्क महायान सम्रदाय का अनुयायी था
कनिष्क के समय गांधार तथा मथुरा कला शैली का विकास हुआ
कनिष्क की राजधानी में प्रथम – पुरुषपुर (पेशावर, पाकिस्तान) तथा दूसरी राजधानी – मथुरा (उ. प्र.) में थी
कनिष्क ने चीन से रोम तक के रेशम मार्ग पर अधिकार कर लिया था
महास्थान (बोगरा जिला, बांग्लादेश) से प्राप्त सोने के सिक्कों पर कनिष्क की खड़ी मूर्ति छपी है
मथुरा से कनिष्क की रोमन पोषक में मूर्ति प्राप्त हुई है जिसका सिर का भाग नहीं है
कनिष्क के दरबार के विद्वान
अश्वघोष – इन्होंने बुद्धचरित (बुद्ध के जीवन की कथा, 37 अध्याय, संस्कृत)
नागार्जुन – इन्होंने माध्यमिक सूत्र की रचना की (इन्हें भारत का आइंस्टाइन भी कहा जाता है)
वसुमित्र – इन्होंने महाविभाष की रचना की
चरक – इन्होंने चरक संहिता (आयुर्वेद ग्रन्थ) की रचना की (कनिष्क के राजवैद्य)
मंथर – प्रसिद्द राजनीतिज्ञ (कनिष्क का मंत्री)
पार्श्व – इनके कहने पर कनिष्क ने चौथी बौद्ध संगीति करवाई थी
संघरक्ष
यह सभी विभूति कहे जाते थे
भारत में सर्वप्रथम सर्वाधिक शुद्ध तथा नियमित सोने के सिक्के कुषाण वंश के शासकों ने चलाये
कनिष्क के स्वर्ण सिक्के रोमन सिक्कों (124 ग्रेन) के बराबर थे
कनिष्क ने देवपुत्र की उपाधि धारण की थी कई कुषाण शासक “देवपुत्र” कहे जाते थे
कुषाण वंश के शासक
कुजुल कडफिसेस (कडफिसेस I)
विम कडफिसेस (कडफिसेस II)
कनिष्क
हुविष्क
कनिष्क II
वासुदेव
कनिष्क III
वासुदेव II (अंतिम शासक)
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