Sindhu Ghati Sabhyata सिन्धु घाटी सभ्यता
sindhu ghati sabhyata
Sindhu Ghati Sabhyata in Hindi Notes
- यह विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में एक प्रमुख सभ्यता है
- यह सभ्यता दक्षिण एशिया के उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में फ़ैली थी
- इसे विश्व स्तर पर मिस्त्र तथा मेसोपोटामिया (सुमेरी या सुमेरियन) की सभ्यता से व्यापक तथा तथा विख्यात सभ्यता माना जाता है
- यह सभ्यता सिन्धु नदी (प्राचीन सरस्वती नदी) के किनारे विकसित हुई थी
- इस सभ्यता के अधिकतम भाग हड़प्पा (पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त) के पास होने के कारण इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है
- यह सभ्यता उस समय के अत्यंत विकसित सभ्यता थी
- पहली बार नगरों के निर्माण के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है
- पहली बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है
- इस सभ्यता को प्राकऐतिहासिक (PROTOHISTORIC) या कांस्य युग का माना जाता है
Sindhu Ghati Sabhyata ki Khoj Kisne ki | सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज किसने की
- 1826 में चार्ल्स मैसेन ने सबसे पहले इस सभ्यता का पता लगाया
- 1856 में कनिंघम ने इस सभ्यता के विषय में सर्वेक्षण किया
- 1856 में कराची से लाहौर के मध्य रेलवे लाइन के निर्माण के समय बर्टन बंधुओं द्वारा हड़प्पा के स्थल की सूचना दी गयी
- 1921 में रायबहादुर दयाराम साहनी के माध्यम से हड़प्पा का उत्खनन किया गया इसलिए इसका खोजकर्ता रायबहादुर दयाराम साहनी को माना जाता है
सिन्धु घटी सभ्यता के प्रमुख स्थल तथा उनसे सम्बंधित जानकारी
- यह सभ्यता मुख्य रूप से नगरीय सभ्यता थी इसमें मुख्य रूप से 6 बड़े नगर प्राप्त हुए हैं
1. मोहनजोदड़ो (सिंध प्रांत, पाकिस्तान)
2. हड़प्पा (मोंटगोमरी जिला, पाकिस्तान)
3. धौलावीरा (कच्छ, गुजरात)
4. गणवारीवाला (भावलपुर जिला, पंजाब, पाकिस्तान)
5. राखीगढ़ी (हिसार जिला, हरियाणा)
6. कालीबंगन (हनुमानगढ़ जिला, राजस्थान)
- इस सभ्यता के 2 प्रमुख बंदरगाह थे (लोथल तथा सुतकोतदा)
- मोहनजोदड़ो के अन्नागार को इस सभ्यता की सबसे प्राचीन इमारत माना जाता है
- मोहनजोदड़ो में बड़े स्नानागार प्राप्त हुए हैं (लंबाई 11.88 मीटर, चौड़ाई 7.01 मीटर, गहराई 2.43 मीटर)
- मोहनजोदड़ो से 3 मुख वाले देवता की मूर्ती प्राप्त हुई है मूर्ती के चारों तरफ गेंडा, हाथी, चीता तथा भैंसा है)
- मोहनजोदड़ो से नर्तकी की कांस्य की मूर्ती प्राप्त हुई है
- स्वतंत्रता के बाद हड़प्पा के सबसे अधिक स्थल गुजरात में मिले हैं
- कालीबंगन में जोते गए खेत तथा नक्काशीदार ईंटो के साक्ष्य मिले हैं
- मोहनजोदड़ो का अर्थ “मृतकों का टीला या किला”
- कालीबंगन तथा लोथल से अग्निकुंग प्राप्त हुए हैं
- इस सभ्यता की मुख्य फसल गेंहूं तथा जौ थी इस सभ्यता के लोग धान तथा कपास की खेती भी करते थे, क्यूंकि लोथल तथा रंगपुर से चावल के दाने मिले हैं (पहले लोथल से)
- इस सभ्यता के लोग मीठे के लिए शहद का उपयोग करते थे कालीबंगन, लोथल तथा सुतकोतदा से घोड़े के अवशेष मिले हैं
- घरों को बनाने के लिए ग्रिड पद्धति का प्रयोग किया जाता था
- घरों की खिड़कियाँ तथा दरवाजे पीछे के ओर खुलते थे (लोथल में सड़क के ओर)
- इस सभ्यता में कुओं के भी प्रमाण प्राप्त हुए हैं (मोहनजोदड़ो)
- यह लोग 2 तथा 4 पहियों वाली गाड़ियां बनाते थे
- इस सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानते थे
- पिग्मट ने हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो को विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानी कहा है
- कूबड़ वाले सांड की पूजा की जाती थी
- इस सभ्यता को मातृसत्तात्मक माना जाता है जिसका ज्ञान अधिक मात्रा में प्राप्त स्त्री की मूर्तियों से होता है
- मातृ देवी की पूजा सबसे अधिक की जाती थे
- इस सभ्यता के लोग भगवान शिव तथा वृक्ष की पूजा भी करते थे
- कालीबंगन एकमात्र शहर है जिसका निचला शहर किले से घिरा हुआ था
- आग में पक्की गयी ईटों को टेराकोटा कहा जाता था
- इस सभ्यता में पर्दा प्रथा का प्रचलन था
- इस सभ्यता के लोग ऊनी तथा सूती वस्त्रों का प्रयोग करते थे
स्थल |
उत्खननकर्ता |
वर्ष |
नदी |
स्थान |
हड़प्पा |
दयाराम साहनी तथा माधोस्वरूप वत्स |
1921 |
रावी |
मोंट्मोगरी, पाकिस्तान |
मोहनजोदड़ो |
राखालदास बनर्जी |
1922 |
सिन्धु |
सिंध प्रान्त, पकिस्तान |
चहुंदडो |
गोपाल मजुमदार |
1931 |
सिन्धु |
सिंध प्रान्त, पकिस्तान |
कालीबंगन |
बी. बी. लाल तथा बी. के. थापर |
1953 |
घग्घर |
हनुमानगढ़ जिला, राजस्थान |
कोटदीजी |
फज़ल अहमद |
1953 |
सिन्धु |
सिंध प्रान्त |
रंगपुर |
रंगनाथ राव |
1953-54 |
– |
काठियावाड़ जिला, गुजरात |
रोपड़ |
यज्ञदत्त शर्मा |
1953-56 |
सतलज |
रोपड़ जिला, पंजाब |
सुतकांगेडोर |
आरेज स्टाइल तथा जोर्ज डेल्स |
1927 तथा 62 |
दाश्क |
मकरान समुद्र तट, पाकिस्तान |
लोथल |
रंगनाथ राव |
1955 तथा 62 |
भोगवा |
अहमदाबाद जिला, गुजरात |
आलमगीरपुर |
यज्ञदत्त शर्मा |
1958 |
हिंडन |
मेरठ जिला, उ. प्र. |
बनमाली |
रवीन्द्र सिंह विष्ट |
1974 |
रंगोई |
हिसार जिला, हरियाणा |
धौलावीरा |
रवीन्द्र सिंह विष्ट |
1990–91 |
रंगोई |
कच्छ जिला, गुजरात |
सिन्धु घाटी सभ्यता के विनाश का कारण
इस सभ्यता के विनाश का मुख्य कारण बाढ़ को माना जाता है
सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि
- इस सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक है
- इस लिपि में चित्र के माध्यम से विचारों को व्यक्त किया जाता था
- इस सभ्यता में लिपि दायीं ओर से बाईं और लिखी जाती थी, एक पंक्ती से अधिक होने पर दूसरी पंक्ति बायीं से दायें और लिखी जाती थी
सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषताएं
इस सभ्यता में प्रतिमाएं, मिट्टी के बर्तन, पकी हुई मिट्टी की मूर्तियाँ, आभूषण आदि प्राप्त हुए हैं
– पत्थर की मूर्तियाँ
– कांसे की ढलाई
– मृन्मुर्तियाँ (टेराकोटा)
– मुद्राएं (मुहर)
– मृदभांड (मिट्टी के बरतन)
– आभूषण
– चित्रित मृदभांड
पत्थर की मूर्तियाँ
- इस सभ्यता में पत्थर, कांसे तथा मिट्टियों से बनी मूर्तिया उच्च कोटि की थी
- हड़पा तथा मोहनजोदड़ो से प्राप्त पत्थर मूर्तिया त्रि आयामी कला का उदाहरण हैं
- पत्थर की प्रतिमाओं में 2 अधिक चर्चित हैं
- पुरुष का धड़ जो लाल बलुआ (चूना) पत्थर का बना है (हड़प्पा)
- दाढ़ी वाले पुरुष की प्रतिमा जिसे धार्मिक या पुजारी माना जाता है (सेलखड़ी की बनी) मोहनजोदड़ो
कांसे की ढलाई
- इस सभ्यता के लोग कांसे की ढलाई में पारंगत थे
- पहले मोम की प्रतिमा बनाकार उस पर चिकनी मिट्टी का लेप लगते थे
- लेप सूखने के बाद उसे गर्म करके एक छिद्र के माध्यम से मोम बाहर निकालते थे
- मिट्टी के शेष सांचे में धातु भरकर मूर्तियों का निर्माण करते थे
- लोथल में पाया गया तांबे का कुता तथा पक्षी, कालीबंगा में पाए गयी सांड की कांस्य प्रतिमा, हड़पा तथा मोहनजोदड़ो में प्राप्त कांसे की मानव मूर्तियाँ
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त सांड की कांस्य प्रतिमा महत्वपूर्ण है
मृन्मुर्तियाँ (टेराकोटा)
- इस सभ्यता के लोग मिट्टी की मूर्तियाँ भी बनाते थे लेकिन वह पत्थर तथा कांसे की मूर्तियों की अपेक्षा कम आकर्षक थी
- लोथल तथा कालीबंगा में पायी गयी नारी की मूर्तियाँ हड़पा तथा मोहनजोदड़ो से भिन्न हैं
- एक सिंग का मुखौटा, मिट्टी की पहिए वाली गाड़ियां, सीटियाँ, खेलने के पासे, गिट्टियां, डिस्क, पशु पक्षियों की आकृति
सिन्धु घाटी सभ्यता की मुद्राएं (मुहर)
- पुरातत्वविदों को कई मुहरें (मुद्राएं) प्राप्त हुई हैं
- यह मुद्राएं साधारणतः सेलखड़ी तथा कभी-कभी गोमेद चकमक पत्थर, तांबा, कांस्य, तथा मिट्टी की बनी होती थी
- इन पर एक सिंग वाले सांड, हाथी, गेंडा, बाघ, हाथी, बकरा, जंगली भैंसा आदि पशुओं की आकृतियाँ होती थी
- मुद्राओं का मुख्य उद्देश्य वाणिज्यिक था लेकिन कुछ लोग इसका उपयोग बाजूबंद में भी करते थे
- हड़प्पा की मानक मुद्रा 2*2 इंच वर्गाकार थी (सेलखड़ी)
- सबसे विख्यात मुद्रा मोहनजोदड़ो में एक मानव आकृति के चारों ओर कई जानवर बने हैं
सिन्धु घाटी सभ्यता के आभूषण
- इस सभ्यता के पुरुष तथा महिला अपने आप को तरह-तरह के आभूषणों से सजाते थे
- यह आभूषण बहुमूल्य धातुओं, रत्नों, हड्डी या मोती के बने होते थे
- फीता, गले का हार, अंगूठियाँ, बाजूबंद पुरुषों तथा स्त्रियों द्वारा पहनी जाती थी
- करधनी, बुंदे (कर्णफूल) तथा पैरों के कड़े तथा पैजनियाँ स्त्रियाँ ही पहनती थी
- मोहनजोदड़ो तथा लोथल से अनेकों गहने मिले हैं जिनमें सोने तथा नगों के हार, सोने के कुंडल, ताम्बे के कड़े तथा मनके, बुंदे आदि प्राप्त हुए हैं
- हरियाणा के फरमान पुरास्थल से एक कब्रिस्तान (शवाधान) में शवों को गहनों के साथ दफनाया गया था
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